Language Learning and Language Acquisition

 अधिगम एवं अर्जन मे क्या अंतर है ?

 Language Learning and Language Acquisition : अधिगम का अर्थ होता है सीखना एवं आर्यन का अर्थ होता है अर्जित करना या ग्रहण करना

 भाषा अधिगम से तात्पर्य  प्रणाली से है जिसमें बच्चा स्वयं प्रयास करता है तथा उसके लिए कुछ आवश्यक परिस्थितियां होती है अधिगम विद्यालय या किसी संस्था में होता है।

Language Learning and Language Acquisition

भाषा अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है बालक अपने आसपास के लोगों  को बोलते लिखते पढ़ते हुए देखता है तथा अनुकरण के द्वारा  सीखता है इसमें बच्चों को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होती है। 

 भाषा अर्जन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु है

  •  भाषा अर्जन मुख्य मातृभाषा का होता है अर्थात मात्रिभाषा अर्जित की जाती है ना सीखी जाती है। 
  •  भाषण व्यवहारिक पद्धति है तथा इसमें अनुकरण की मुख्य भूमिका होती है। 
  •  भाषा  अर्जन में बच्चों को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है। 
  •  भाषा अर्जन की प्रक्रिया सहज और स्वाभाविक होता है। 
  • इसमें किसी अन्य भाषा का रोल नहीं होता है। 
  •  इसमें किसी व्याकरण की आवश्यकता नहीं पड़ता है। 
  •  भाषा अर्जुन  में सर्वाधिक महत्व समाज का होता है। 

 भाषा से संबंधित कुछ मनोवैज्ञानिक तथ्य

  •  पावलव और skiner : नकल बरतने से भाषा की क्षमता प्राप्त होती है। 
  •  चोम्स्की :  बच्चों में भाषा अर्जन की छमता जन्मजात होती है। 
  •  पियाजे:  भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रों की भांति परिवेश के साथ अंतः क्रिया के माध्यम से ही विकसित होता है। 
  •  वाइगोत्सकी :  बच्चों की भाषा समाज के साथ संपर्क का ही परिणाम होता है। 

 अति महत्वपूर्ण बिंदु है

  •  मानक भाषा अथवा द्वितीय भाषा सीखने में मातृभाषा का  रोल होता है। 
  •  स्कूल आने से पूर्व बच्चों अपनी मातृभाषा का प्रयोग करना जानते हैं। 
  •  बच्चे हैं स्कूल आने से पूर्व ही अपनी भाषाएं पूंजी से लैस होता है। 
  •  गृह कार्य बच्चे के सीखने का विस्तार देता है। 
  •  प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा होना चाहिए। 
  •  प्राथमिक स्तर पर बच्चे को भाषा सीखने का मुख्य उद्देश्य होता है कि बच्चा जीवन  की विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग कर पाता है। 
  •  कक्षा में बच्चे मातृभाषा को सदैव सम्मान देना चाहिए। 
  •  कक्षा में भाषा की विविधता संसाधन के रूप में कार्य करती है। 
  •  प्राथमिक स्तर बच्चों को भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देना चाहिए यह भाषा शिक्षण के लिए सबसे अधिक आवश्यक है। 

 भाषा शिक्षण के सिद्धांत 

अनुबंध का सिद्धांत क्या है?

अनुबंध का सिद्धांत :  शैशवावस्था में बच्चा किसी शब्द को सीखता है तो वह उसके लिए अमूर्त होता है इसलिए किसी मूर्त वस्तु से उसका संबंध जोड़ कर उसे शब्द सिखाया जाता है। 

 जैसे पानी शब्द बोलने के लिए पानी को दिखाया जाता है। 

अनुकरण का सिद्धांत क्या है?

 अनुकरण का सिद्धांत :  बालक अपने परिवार यह समाज में बोली जाने वाली भाषा का अनुकरण करके सीखता है इसीलिए परिवार व समाज में त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग होता है तो बच्चा भी त्रुटि पूर्ण भाषा बोलने लगता है। 

 अभ्यास का सिद्धांत क्या है?

 अभ्यास का सिद्धांत : Thorndike के अनुसार भाषा का विकास अभ्यास पर निर्भर करता है भाषा बिना अभ्यास के ना तो सीखी जाती है ना ही उसके कुशलता का बरकरार रखा जा सकता है। 

 इनके अलावा भी भाषा के कई अन्य छोटे-छोटे सिद्धांत दिए हुए हैं। 

 महत्वपूर्ण बिंदु हैं 

भाषा सीखने के लिए एक ऐसी गतिविधियां कराई जानी चाहिए जिसमें बच्चों को भाषा प्रयोग एवं अभिव्यक्ति के अधिक अवसर मिले। 

  •  भाषा सीखने का व्यवहार वादी दृष्टिकोण अनुकरण पर बल देता है। 
  •  भाषा शिक्षण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाषा प्रयोग के अवसर देना होता है। 
  •  भाषा शिक्षण की प्रक्रिया अन्य विषयों की कक्षा में भी चलती रहती है क्योंकि किसी भी विषय को बढ़ाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है। 
  •  भाषा शिक्षण में कविता कहानियां का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चे भाषा सीखने में रुचि लें। 

कहानियां कविता नाटकों का प्रयोग कक्षा में निम्न उद्देश्य की पूर्ति करता है

  • बच्चों को इसमें आनंद आता है। 
  •  बच्चे विषय में रुचि लेते हैं। 
  •  बच्चे अपनी संस्कृति को जानते हैं
  •  शब्द भंडार कल्पना शक्ति चिंतन सृजन आदि कौशलों का विकास होता है। 

 भाषा के कार्य एवं उनके विकास में बोलने एवं सुनने की भूमिका

 भाषा के कार्य

  •  भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता इच्छा भावनाएं आदि अभिव्यक्त करने की सहायता प्रदान करती है। 
  •  दूसरा का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते हैं। 
  •  सामाजिक संबंध बनाने के लिए हम भाषा का प्रयोग करते हैं। 
  •  नई ज्ञान की प्राप्ति के लिए भाषा बहुत ही आवश्यक है। 
  •  शिक्षा प्राप्त करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। 
  •  दूसरे व्यक्ति की बातों को समझने के लिए भाषा की जरूरत पड़ता है। 
  •  अपनी कला संस्कृत समाज का विकास करने के लिए भाषा की जरूरत होता है। 

 भाषा विकास में सुनने की भूमिका

 सुनना  भाषा विकास के निम्न क्षेत्रों में भूमिका निभाता है जैसे कि

  • सुनकर ही बच्चा बोलना सीखता है वह अपने परिवार व समाज के लोगों को बोलते हुए सुनता है तथा उनका अनुकरण करता है। 
  •  भाषा भंडार में वृद्धि के लिए होता है। 
  •  बोलकर ही बच्चा भाषा कुशलता भाषा प्रभाव प्राप्त करता है। 
  •  बातचीत के द्वारा सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है। 

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

  •  स्वास्थ्य 
  •  वृद्धि 
  •  सामाजिक-आर्थिक स्तर
  •  परिवार का आकार
  •  जन्म कर्म
  •  जुड़वा बच्चा
  •  एक से अधिक भाषा का प्रयोग
  •  साथियों के साथ संबंध
  •  माता-पिता द्वारा प्रेरणा

 भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका

  • भाषा का व्याकरण भाषा का मूल रूप होता है। 
  •  व्याकरण के बिना भाषा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
  •  भाषा में सदैव परिवर्तन होता रहता है भाषा के इस परिवर्तन पर नियंत्रण रखने का अर्थ व्याकरण ही करता है। 
  •  व्याकरण से भाषा में शुद्धता आती है। 
  •  व्याकरण से विभिन्न ध्वनियों विभिन्न शब्दों का ज्ञान प्राप्त होता है। 
  •  व्याकरण के बिना भाषा शिक्षण एक कठिन कार्य है। 
  •  बच्चों को भाषा के नियम सिखाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता पड़ती है। 
  •  व्याकरण के बिना भाषा शिक्षण एक कठिन कार्य है। 
  •  उच्च प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण प्रारंभ हो जाता है। 
  •  प्राथमिक स्तर पर बच्चों को व्याकरण नहीं पढ़ाया जाता है परंतु शिक्षक को व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है। 

व्याकरण शिक्षण की विधि

 निगमन विधि क्या है?

 निगमन विधि :  जब इतने पर आधारित होता है इसमें शिक्षक छात्रों को मौखिक रूप से भाषा के नियम बता देता है या फिर उसे लिखित रूप में प्रदर्शित करता है जिससे विद्यार्थी नियम और विधियों को रख लेता है।  

वैसे तो इस विधि को नियम पर आधारित होता है। शिक्षक द्वारा पहले नियम प्रदान किया जाता है उसके बाद उसका विश्लेषण किया जाता है जिसे हम निगमन विधि कहते हैं।  यह शिक्षक केंद्रित विधि मानी जाती है। 

 आगमन विधि क्या है?

 आगमन विधि :  यह एक व्यवहारिक विधि है इसमें बच्चे कुछ उदाहरणों के आधार पर सीखता है इस विधि के अंतर्गत शिक्षक सबसे पहले उदाहरण देता है उसके बाद नियम बताते हैं। 

 बच्चों को सर्वप्रथम उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है उसके बाद नियम प्रदान किया जाता है।  यह विधि छात्र केंद्रित विधि मानी जाती है। 

 प्रयोग विधि क्या है? 

 प्रयोग विधि :  यह विधि आगमन विधि से मिलती-जुलती है जिसमें आंकड़ों को उदाहरण देकर या प्रयोग करके निष्कर्ष निकाला जाता है। 

 प्रत्यक्ष विधि क्या है? 

 प्रत्यक्ष विधि :  प्रत्यक्ष विधि में बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव प्रदान किया जाता है कहने का मतलब बच्चों को विद्वान लेखकों तथा वह लोग जिन्हें भाषा पर पूर्व अधिकार होता है उससे बातचीत के अवसर प्रदान किए जाते हैं यह विधि अनुकरण पर आधारित है यह एक व्यवहारिक दृष्टिकोण से भी है। 

  भाषा संसर्ग विधि  क्या है?

 भाषा संसर्ग विधि मैं बच्चों को विद्वान लेखकों की कृतियां तथा पुस्तके पढ़ाई जाती है जिससे भाषा को सही रूप में बच्चे जान सके। 

 खेल विधि क्या है ?

 खेल विधि में बच्चे सबसे ज्यादा रुचि लेता है खेल के माध्यम से बच्चों को शब्द भेद लिंग वेद वचन संज्ञा इत्यादि सिखाए जाते हैं । 

भाषा विविधता वाले कक्षा कक्ष की समस्याएं

 भाषा विविधता क्या है ?

 भाषा विविधता को बहुभाषिकता भी कह सकते हैं भारत एक बहू भाग सकता देश है यहां पर हर क्षेत्र में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है जब एक ही कक्षा में अलग-अलग स्थानों से बच्चे आते हैं तो उनकी मात्रिभाषा अलग-अलग होती है ऐसी कक्षा को भाषा विविधता वाली कक्षा कर सकते हैं या कहा जाता है। 

 समस्या या चुनौतियां

  •  यदि बच्चों की मातृभाषा हिंदी नहीं है तो उसे हिंदी पुस्तकें पढ़ने व समझने में समस्या आ सकती है। 
  •  सभी बच्चों के भाव को समझना शिक्षक के लिए कठिन हो सकते हैं।
  •  शिक्षक को इस योग्य बनाना होता है कि वह प्रत्येक बच्चों की अभिव्यक्ति को समझ स्थापित कर सकें। 
  •  बच्चे एक दूसरे से बात करने में हिचकते हैं क्योंकि उनकी भाषाएं अलग अलग होती है।  

भाषा विविधता का लाभ

यद्यपि भाषा में विद्या वाली कक्षा में कुछ चुनौतियां का सामना करना पड़ता है क्योंकि इसके कुछ लाभ हैं:

  • भाषा विविधता या बहुभाषिकता कक्षा में एक संसाधन के रूप में कार्य करती है। 
  •  बच्चों को अन्य भाषाओं के शब्दों को जानने का अवसर मिलता है। 
  •  शब्द भंडार में वृद्धि होती है

 भाषा कौशल

 एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की बातों विचारों को सुनने समझने तथा अपनी बातों विचारों भावनाओं को सख्त करने में जिन मुख कौशलों का प्रयोग किया जाता है उन्हें भाषा कौशल कहा जाता है भाषा कौशल चार प्रकार के होते हैं। 

 भाषा कौशल कितने प्रकार के होते हैं ? 

भाषा कौशल चार प्रकार के होते हैं

  • श्रवण कौशल
  • बोलना कौशल
  •  पढ़ना कौशल
  •  लिखना कौशल

 सुनना और पढ़ना ग्रहण आत्मक कौशल है

 बोलना और लिखना अभिव्यक्त आत्मक कौशल है। 

 

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