चिंतन क्या है? सोचना अथवा चिंतन एक उच्च प्रकार की ज्ञानात्मक प्रक्रिया है,
बालक कैसे चिंतन करते हैं
या
बच्चे चिंतन कैसे करता है?
चिंतन एक ऐसी क्षमता है जो प्रकृति ने सिर्फ मानव को दी है तथा चिंतन वास्तव में एक जटिल प्रक्रिया है।
आज हम इस भाग में इस बिंदु पर चर्चा करेंगे कि लोग चिंतन कैसे करते हैं।
चिंतन क्या है
अर्थ- चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है जो किसी समस्या का समाधान ढूंढने में सहायक होता है।
चिंतन की विशेषताएं
- चिंतन की शुरुआत हमेशा समस्या से होती है।
- चिंतन एक लक्ष्य मुखी प्रक्रिया है।
- चिंतन का लक्ष्य हमेशा समस्या समाधान होता है।
- चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है।
- चिंतन एक चेतन प्रक्रिया है।
- चिंतन एक तार्किक प्रक्रिया है।
- चिंतन कल्पना से अलग है क्योंकि चिंतन में तर्क है जो कल्पना में नहीं है।
- चिंतन में कोई न कोई मुद्दा या विचार जरूर शामिल होता है।
- चिंतन के लिए समस्या की पूरी जानकारियां या संज्ञान प्रत्यक्षीकरण आवश्यक है।
चिंतन के तत्व
चिंतन के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना जरूरी है।
- प्रत्यक्षीकरण
- वस्तुएं
- चिन्ह
- विचार या मुद्दा
- भाषा
चिंतन के प्रकार
1. अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) :- जो शुरुआत अनेक बिंदुओं से हो लेकिन अंत सिर्फ एक बिंदु से हो जैसे कि- बहुविकल्पीय प्रश्न
अभिसारी चिंतन के कुछ अलग अलग नामों से जाना जाता है जो नीचे दिया गया है
- पारंपारिक चिंतन
- रूढ़िवादी चिंतन
- दकिया लूसी चिंतन
- एक दिवसीय चिंतन
- लंबवत चिंतन
- इन द बॉक्स चिंतन
2. आपसारी चिंतन ( Divergent Thinking ) :- जब शुरुआत एक बिंदु से हो लेकिन अंत अनेक बिंदुओं से हो तो उसे अप्सरी चिंतन कहते हैं। जैसे- खुले अंत वाले या निबंधात्मक
- वैज्ञानिक चिंतन
- सृजनात्मक चिंतन
- पार्श्विक चिंतन
- बहुत दिवसीय / बहुविध चिंतन
- आउट ऑफ द बॉक्स चिंतन
3. तार्किक चिंतन :- जब किसी कथन को तर्क के सहारे सही सिद्ध किया जाए या तर्कों के सहारे उसके सत्यता के वैधता सिद्ध की जाए तो उसे तार्किक चिंतन कहते हैं। जैसे – त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180 डिग्री होता है यह कथन का उदाहरण है।
4. मूर्त चिंतन :– जब चिंतन वस्तु या पटना के सामने होने पर ही संभव हो या उससे पहले देखा गया हो ऐसे चिंतन को मूर्ख चिंतन कहा जाता है जैसे कि 1 बच्चों का पशुओं पक्षी पर आधारित प्रश्नों का चिंतन चिंतन का उदाहरण है।
5. अमूर्त चिंतन : अगर तर्कों के सारे उस घटना या परिस्थिति को भी सिद्ध कर लिया जाए जो दिखाई नहीं पड़ती हो उसे अमूर्त चिंतन कहा जाता है। जैसे न्यूटन द्वारा दिया गया गुरुत्वाकर्षण का नियम
सृजनात्मकता / सृजनात्मक चिंतन
सृजनात्मक चिंतन के तत्व
गिलफोर्ड एवं टॉरेंस आदि मनोवैज्ञानिकों ने सृजनात्मक चिंतन के निम्नलिखित चार तत्व माने है।
- धाराप्रवाह : बिना रुके नए-नए विचार बनाने की क्षमता है
- लचीलापन : किसी भी परिस्थिति मैं नवीन तरीके से समायोजित होना.
- मौलिकता : इसे भी नकल ना करना खुद का नया विचार देना
- व्याख्या / विस्तारन : किसी विषय वस्तु पर अश्मित व्याख्या देना।
सृजनात्मक चिंतन के चरण
ग्राहम वल्स ने सृजनात्मक चिंतन के निम्नलिखित चार चरण बताए है।
- तैयारी (Preparation) – एक नवीन चिंतन की शुरुआत
- उद्भवन/सुप्तावस्था (incubation) – चिंतन की वह अवस्था जहां व्यक्ति तमाम संभावनाओं पर विचार करता है लेकिन निष्कर्ष तक नहीं जाता है।
- प्रकाशन/उद्भासन (Illumination) –अचानक ही कुछ नया अविष्कार या नया सिद्धांत बना देना।
- सत्यापन/मूल्यांकन (Verification) – यह पता करना की बनाई गई नवीन वस्तू या सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है या नहीं ।
बच्चों में चिंतन बढ़ावा कैसे दें
- बच्चों को रट्टा मारने पर जोड़ना ना दे
- बालक से तुरंत पूर्णता की उम्मीद ना रखे
- बालक को खुद से समस्या को सुलझाने के लिए कहें
- अगर बालक कुछ नया कर रहा है तो उसे करने दे ना कि विरोध करें
- विद्यालय में सिर्फ अच्छे अंक पर ही नहीं समझ पर भी जोड़ दें।
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